अहंकार एक ऐसा दोष है जो हमें आध्यात्मिक मार्ग से भटकाता है, हमारी चेतना को सूक्ष्म रूप से प्रभावित करता है। अक्सर, जिसे हम अहंकार समझते हैं, वह वास्तव में उसका परिणाम होता है। अहंकार की प्रकृति की यह बुनियादी समझ कई लोगों में नहीं होती। इस वीडियो में, श्री गुरु भक्ति के साथ तुलना करके अहंकार को स्पष्ट रूप से परिभाषित करते हैं।
up next
आत्मज्ञान क्यों चाहिए ?
इच्छा कैसे पैदा होती है ?
संत का जीवन
जीव की विकास यात्रा – योग वशिष्ठ
ईश्वर से प्रेम कैसे बढ़ाएँ?
अनेक धर्म की एक बात
नवरात्रि और देवी का स्वरूप (ध्यान प्रयोग सहित)
आनंद और ऊर्जा ही हमारा अस्तित्व है
आत्मज्ञान के 5 चरण: श्री गुरु की ओर से मार्गदर्शन
गुरु से अत्यंत प्रेम करना!
वैराग्य में स्थिर कैसे रहें?
अध्यात्म: गुरुदेव टैगोर के शब्दों में
अहंकार का स्वरूप