जगत केवल समृद्धि की राह दिखा सकता है, परन्तु वास्तविक संतोष तो एक सद्गुरु की शरण में ही अनुभव होता है।
शिष्य वही जिसने गुरू के हृदय को पहचाना है। ऐसा शिष्य ही गुरू की दशा को लक्ष्य बनाकर उस अनुभव तक पहुँच सकता है..!